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प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 14)









अरुण और अनि एक दूसरे के आमने सामने थे। दोनों के ही जिस्म पर काला लिबास था, अरुण के कपड़ो पर नरेश के लहू के छींटे पड़े हुए थे। अनि के कुछ बोल पाने से पहले ही अरुण बड़ी फुर्ती साथ अनि की ओर उछला, अनि तेजी से एक ओर हट गया, जिससे अरुण का वार खाली गया। अरुण का जिस्म दुबारा हवा में लहराया, इस बार अनि एक ओर हटकर बचने की कोशिश किया मगर अरुण यह पहले ही समझ चुका था, अनि की गर्दन पर अरुण की लात का करारा वार पड़ा, अनि दूसरी ओर दीवार से जा टकराया। अरुण उसकी ओर दौड़ा मगर तब तक अनि सम्भल चुका था, उसने हवा में बैक फ्लिप लेते हुए, अरुण के पीठ पर दोनों लात जोड़कर फ़्लाइंग किक जड़ दिया, अरुण जाकर सीधा दीवार से टकराया। इससे पहले अरुण सम्भल पाता अनि ने उसकी गर्दन पर हथेली से वार करना चाहा मगर अरुण उसकी यह चाल भाँप चुका था, उसने अनि के हाथ को पकड़कर बुरी तरह मरोड़ दिया। अनि की चीख पूरे कमरे में गूंज गयी।

अनि ने दांव उल्टा खेला, वह मरोड़ की दिशा में घूम गया, अब अरुण, अनि के कब्जे में था। मगर यह शायद अनि का वहम था, अरुण ने उसके पेट पर लात से प्रहार किया, अनि की पकड़ थोड़ी सी ढीली हुई, अरुण ने उसको दाहिने हाथ से उठाकर फर्श पर पटक दिया।

"ओ मोरी मैय्या! कुछ तो शरम करते भैय्या!" अनि जोर से चीखते हुए उठा। अरुण हवा में उछला, उसका लात अनि के मुंह से टकराने वाला था। अनि बला की फुर्ती से अपने स्थान से हट गया, अरुण का वार खाली गया वह सीधा दीवार से जा टकराया। अनि की आँखों में अब गुस्सा नजर आ रहा था, उसके शक्तिशाली मुक्के ने अरुण का जबड़ा हिला दिया। अरुण अपने दाहिने हाथ से अपने जबड़े को थामे उठा, अनि अगला वार करना चाहता था मगर अरुण ने उसके गले को कसकर पकड़ लिया। अनि बुरी तरह छटपटाने लगा, अरुण के सामने वह कहीं का नहीं ठहर रहा था। अचानक अनि को ध्यान आया कि तब से अरुण अपने दाहिने हाथ का प्रयोग कर रहा है, वह बाएँ हाथ के प्रयोग करने से बच रहा है और उसने इस वक़्त उसकी गर्दन बाएँ हाथ से ही थामा हुआ है। ये समझ आते ही अनि दीवार का सहारा लेकर ऊपर की ओर उछला, अरुण का बायां हाथ बुरी तरह मुड़ गया, उसके बांह से खून रिसने लगा। अनि ने उसकी बाँह पर जोरदार घूसा मारा, अरुण बुरी तरह तिलमिला उठा। उसने अपना जबड़ा भींच लिया ताकि उसकी चीख बाहर न निकले। अनि एक के बाद एक कई घूसे बरसाता गया, अरुण दर्द से बिलबिला उठा वह फर्श पर लोट गया।

"अब मेरी बात ध्यान से सुनो अरुण! मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं हूँ।" अनि ने अरुण की आंखों में झाँकते हुए कहा। मगर यही वह बहुत बड़ी गलती कर गया, अरुण बिजली की फुर्ती के साथ खड़ा होते हुए अनि को दूर फेंक दिया। अब अनि दुबारा अरुण की गिरफ्त में था।

"मैं जानता हूँ तुम मेरे दुश्मन नहीं हो! कोई भी दुश्मन केवल बचाव के लिए वार नहीं करता और तुम्हारें वार मुझे सिर्फ होश में लाने वाले थे, नुकसान पहुँचाने वाले नहीं।" अरुण ने मुस्कुराते हुए कहा, अब उसका गुस्सा काफूर हो गया था जो नरेश को देखते ही फिर बढ़ने लगा।

"अब क्या तुम ये भी कहोगे कि ये भी हमारा दुश्मन नहीं है?" अरुण ने अनि से नरेश की ओर इशारा करते हुए गुस्से से कहा।

"ये मुसीबत के मारे हैं अरुण! इन्होंने जो कुछ भी किया वो इनकी मर्जी नहीं थी।" अनि ने शांत स्वर में कहा।

"मतलब तुम तो ये मानते हो न कि इन्होंने ही ऐसा किया है?" अरुण ने व्यंग्यपूर्ण लहज़े में कहा।

"हां! मगर मजबूरी में!" अनि ने कहा, तभी नरेश के कराहने की आवाज आई, काव्या उसको एक कोने में लेकर चली गयी थी। उसे होश आया रहा था।

"कैसी मजबूरी?" अरुण दहाड़ उठा।

"मेरी बेटी के शरीर में बम है अरुण!" नरेश की आँखों में आंसू थे। "इसकी माँ के जाने के बाद एक यही मेरा सहारा है। अगर इसे कुछ हो गया तो…!"

"झूठ मत बोलो!" अरुण गुर्राया।

"यह झूठ नहीं बोल रहे अरुण! ये देखो!" अनि ने काव्या की गर्दन पर पॉइंट करते हुए कहा। उसकी गर्दन पर हल्का सा चीरा लगा हुआ नजर आ रहा था, अरुण उसे गौर से देखने लगा।

"तुम्हें ऐसा क्यों लगता है मिस्टर की मैं तुम्हारी बातों में आ जाऊंगा?" अरुण का दिमाग फिर से सटकने लगा।

"क्योंकि वो जो कोई भी शख्स है, वह भी यही चाहता है। ये तुम अपनी मर्ज़ी से नहीं कर रहे ये उसी की चाल है, वो चाहता है कि तुम ऐसा करो!" अनि उसकी आंखों में झाँकते हुए बोला।

"तुम अपनी गोल गोल बातों से मुझे नहीं भटका सकते हो मिस्टर! अगर ये सच है तो इसने क्यों नही बताया मुझे?" अरुण भड़क उठा।

"बताना तो चाहा था, मगर तुमने मौका ही नहीं दिया!" नरेश ने कराहते हुए कहा।

"तो अब आप सब बताइए!" अनि ने नरेश को उठाकर सोफे पर बिठाते हुए कहा।

"करीबन एक महीने पहले की बात है! मैं अपनी बेटी के साथ ज्वालाजी देवी के दर्शन के लिए मसूरी जा रहे थे। मुझे प्रसर्नल काम में सिक्युरिटी को साथ रखना उचित नहीं लगता वैसे भी अब मैं सत्ता में नहीं रहा। सबकुछ ठीक ही चल रहा था मगर हमारे लौटने तक में शाम हो गयी! हम दोनों हँसते-मुस्कुराते हुए घर लौट रहे थे, तभी एक हादसा हुआ! और हमारी खुशियों को ग्रहण लग गया। मुझे कुछ भी याद नहीं क्योंकि मेरी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा। जब करीब आधे घण्टे बाद मुझे होश आया तो काव्या मेरे साथ कार में नही थी। मैंने बहुत ढूंढा पर वह मुझे नहीं मिली, मैंने पुलिस को कॉल करने के लिए फ़ोन निकाला, इससे पहले मैं किसी को कॉल करता मुझे फ़ोन के बैक पर एक चिट मिला।

चिट में मुझे साफ धमकी दी गयी थी, उसने कहा कि काव्या उनके पास है, अगर मैंने उनकी बात न मानी और पुलिस के पास जाने की कोशिश भी की तो वे उसकी जान ले लेंगे!" नरेश के आँखों में आँसू थे।

"तुम सच में सच ही बोल रहे हो न?" अरुण ने उसे घूरते हुए कहा। "क्योंकि तुम्हारी बेटी तो यहीं मौजूद है, कोई किडनैप करके उसे तुम्हारें ही घर में क्यों रखेगा?"

"यही तो मुझे समझ नहीं आया। मैं उसकी धमकी से बुरी तरह डर गया था, उसने कहा कि मुझे बस उसका छोटा सा काम करना है जिसके बाद वो मेरी बेटी को छोड़ देगा।" नरेश ने आगे का हाल सुनाया।

"और वो काम क्या था?" अरुण ने नरेश की ओर झुकते हुए पूछा। मगर अनि के यहां होने से नरेश का डर भी चला गया था, उसकी आंखों में डर नदारद था।

"कुछ खास नहीं! बस पुलिस को उलझाए रखना और उनको एक जगह मुहैया कराना! है न?" अनि ने मुस्कुराते हुए कहा।

"हाँ! पहले मैंने उसकी हर बात मानता गया, उसे जहां भी किडनैपिंग करनी होती मैं पुलिस वहां जाने से रोक लेता, क्योंकि सत्ता में न होने के बावजूद सभी से मेरे अच्छे सम्बन्ध है। मैं हर रोज उससे अपनी बेटी के बारे में पूछता रहता, इन सब में मैं इतना अधिक उलझ गया था कि कभी घर आने का मौका ही नहीं मिला। एक जैसे ही मैं घर आया काव्या घर पर ही थी, वो तब से घर पर मेरा इंतज़ार कर रही थी। मुझे बहुत बुरा लगा, मैं बहुत बड़ा धोखा खा चुका था, मैंने आदित्य को कॉल किया तभी मुझे पता चला कि तुम जिन बच्चों को बचाया था वे मारे गए थे। मुझे मेरी बात कहने का मौका नहीं मिला, मैं वहां जाकर लोगो को समझाया। घर आने के बाद मुझे मेरी भूल का एहसास हुआ, मेरी गलती से ये मासूम मारे गए थे मैं खुद को सरेंडर कर उसका पता बताने वाला था। तभी मुझे एक अनजान नम्बर से कॉल आया उसने मुझे मेरी बेटी के गर्दन के पास गौर से देखने को कहा। उसने मामूली ऑपरेशन द्वारा काव्या की गर्दन में बम लगा दिया था, जिसका रिमोट कंट्रोल उसकी हाथों में था। मगर आज मैं उसके पास गया था।" नरेश कहता गया, उसकी आँखों में आँसू भर आये थे।

"किसके पास?" अरुण ने कहा।

"ब्लैंक के! कल जो उसने किया था उसके लिए मैं उस पर खूब भड़का मगर उसने मुझे चारों खाने चित कर दिए। मैं बहुत गिड़गिड़ाया, अचानक ही उसको जाने दिया और कहा कि मैं तुम छोड़ देता हूँ, साथ ही उसने मेरे हाथ में यह रिमोट भी थमा दिया।" नरेश ने वह रिमोट निकालते हुए कहा।

"अब क्या कहोगे मिस्टर?" अरुण अनि की ओर देखकर गुर्राया। "ये इंसान साफ झूठी कहानी सुना रहा है, इसकी बेटी के गर्दन में बम है और रिमोट इसके ही पास..! क्या मतलब है इसका?" अरुण बुरी तरह भड़क उठा था। एक पल को अनि हक्का बक्का रह गया, उसे समझ नहीं आया कि वह क्या बोले।

"यही सच्चाई है अरुण! मैं मेरी बेटी की कसम खाकर कहता हूँ मैं झूठ नहीं बोल रहा।" नरेश की आँखों में दृढ़ता थी। "और एक बात तो मैं बताना ही भूल गया, जब मैं वापिस आ रहा था तो ब्लैंक ने मेरी कार भी बदलवा दी, मुझे ऐसा लगता है जैसे तुम्हें कार से कोई सुबूत मिला हुआ है।" नरेश ने हड़बड़ाते हुए कहा।

"और कितनी झूठी कहानियां बनाओगे मिस्टर समाजसेवक?" अरुण का हाथ नरेश की गर्दन तक पहुँच गया।

"मैं समझ गया! वो ब्लैंक! वो जो भी कोई है वह यही तो चाहता है अरुण! वह बहुत अधिक शातिर है! वह यही तो चाहता है जो तुम कर रहे हो, सोचों कि उसने इनके हाथ में वह रिमोट दे दिया, कार बदल दी। हर एक चाल ऐसी चली जिससे शक इनके उपर ही जाए, तुम सोचों यह आज ही क्यों हुआ! क्योंकि कहीं न कहीं वह जानता था कि तुम उसपर अपनी नजर बनाए हुए हो, इसका मतलब वह तुम्हें जानता है, अगर मैं यहां नहीं आता तो तुम इन्हें मार चुके होते और यही तो कराना चाहता था वो।" अनि एक ही बार में बोलता गया, जैसे वह किसी बड़े रहस्य को सुलझा रहा हो।

"यानी…!" अरुण ने कहा तभी उसका ध्यान रिमोट की ओर गया तो अचानक ही फ़्लैश करने लगा था। "यह क्या है?" अरुण चौंका।

"उसी शातिर चालबाज की एक और चाल! क्योंकि रिमोट के एक्टिव होने के साथ बम भी एक्टिव हो चुका है।" अनि काव्या की ओर लपका। उसकी गर्दन में तेज दर्द होने लगा था।

"क्यों न हम रेड बटन प्रेस करें जिससे रिमोट डेड हो जाये, फिर रिमोट के बगैर बम भी बेकार हो जाएगा।" अरुण ने रिमोट उठाते हुए कहा।

"नहीं…!" नरेश बुरी तरह चीखा, काव्या को एक खरोंच लग जाने पर भी वह बुरी तरह सहम जाता था अगर उसे कुछ हो जाएगा तो उसका क्या होगा! इस ख्याल ने उसे अंदर तक हिलाकर रख दिया था।

"प्लीज अरुण अब ये समझना बन्द कर दो कि ये भी इनकी ही चाल है!" अनि चिल्लाया। "लाओ रिमोट मुझे दो!" अनि ने अरुण के हाथ से रिमोट छीनते हुए कहा।

"ओह माय गॉड!" रिमोट की बनावट देखते ही अनि का मुंह खुला का खुला रह गया। "ये एक स्पेशल फ्रीक्वेंसी द्वारा इस बम से जुड़ा हुआ है अरुण! हमारे पास अधिक वक़्त नहीं है, अब अगर एक मिनट की भी देरी हुई तो बम शायद फट सकता है।" अनि आशंकित स्वर में बोला।

"पर मैं क्या करूँ?" अरुण ने अपनी लाचारी दर्शायी।

"प्लीज मेरी बेटी को बचा लो! प्लीज! मैं तुमसे कोई झूठ नहीं बोल रहा हूँ।" नरेश बुरी तरह गिड़गिड़ाने लगा।

"क्या तुम गले में चीरा लगा सकते हो अरुण?" अनि ने कहा, अरुण कुछ नहीं बोला, उसके होंठो पर मनमोहन मुस्कान फैल गयी, अगले ही पल अरुण के हाथों में खंजर नजर आने लगा, जो वह हमेशा अपने बूट के साथ रखा रहता था।

"बिल्कुल!" अरुण के चेहरे पर शैतानी मुस्कान उभर आई।

"तुम्हें यहां कट लगाना है हल्का सा!" अनि ने काव्या की गर्दन पर जहां इस वक़्त हल्की रोशनी हो रही थी इंगित करते हुए कहा।

"तो क्या तुम तैयार हो बच्ची!" अरुण ने काव्या से पूछा, उसने कोई उत्तर नहीं दिया बस उसके होंठ और सख्ती से भींच गए।

"अभी नहीं जब मैं कहूँ तब!" अनि ने कहा। मगर अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। वह रेड और ग्रीन बटन में उलझा हुआ था।

"रेड बटन दबाव जल्दी! नहीं तो बम फट जाएगा।" नरेश चीखा।

"तुम अपने चाकू का फल थोड़ा गर्म कर सकते हो?" अनि ने अरुण से पूछा। इतना सुनते ही अरुण ने अपनी कमर में खोंसी हुई दूसरी पिस्तौल निकाला और चाकू के फल पर एक साथ दो-दो फायर झोंक दिया, चाकू का फल लाल रंग का होकर चमकने लगा।

"अभी!" अनि चिल्लाया! वह लाल और हरे बटन में उलझा हुआ था, जैसे ही अरुण ने उस जगह पर कट लगाया अनि ने ग्रीन बटन दबा दिया। एक पल को उसे लगा उसने कितनी बड़ी भूल कर दी मगर जब अगले दो सेकंड तक कुछ न हुआ तो उसने राहत की सांस ली। काव्या की गर्दन से रक्त की धार भ निकली, अपने होंठो को सख्ती से भींचे हुए वह किसी तरह दर्द को पीने की कोशिश कर रही थी मगर आँखों से आँसुओ की नदियां बह निकली थी। कुछ भी हो आखिरकार थी तो एक सोलह-सत्तरह साल की बच्ची ही न! अरुण ने चाकू के फल को हल्का सा और गड़ाया और उस माइक्रोबम के एक तार को पकड़कर बाहर खींच दिया, काव्या की चींख कमरें में चारों ओर गूंज गयी। अगले ही पल अनि और अरुण ने बम और रिमोट दोनों को एक साथ खिड़की से बाहर फेंक दिया। हवा में ही एक जोरदार धमाका हुआ, यह धमाका केवल बम में ही नहीं वरन रिमोट में भी हुआ था। यह देखते ही सभी की आँखे  हैरत से फटी रह गयी।

"तुमने ये कैसे जाना कि लाल नहीं हरा बटन दबाना है?" अरुण, अनि की ओर मुखातिब हुआ। "और तुम हो कौन?"

"क्योंकि जो भी यह चाल चल रहा था वह इतनी आसानी से मात खाने वालों में से नहीं है। उसने यह सोचा कि तुम तो मार ही दोगे, मगर अगर तुम नहीं पीछा करते और मारते तो भी इनका मरना तय था, क्योंकि उसने कहा कि अब ये छोड़ दिये जाते है। गहराई से देखा जाए तो वो इन्हें फ्री करने की बात कर रहा था मगर अपने चंगुल से नहीं वरन इस संसार से…! मैंने सोचा कोई इतनी आसानी से रिमोट, उस शख्स को क्यों थमा देगा, जिससे वह उसको कंट्रोल कर रहा हो? जवाब सिंपल सा था क्योंकि वो उसे मारना चाहता है, रेड बटन दबाते ही रिमोट ब्लास्ट हो जाता, और फिर बम का ब्लास्ट होना तो तय ही था। मगर ग्रीन बटन दबाने से बम एक मिनट के लिए डेड हो गया और उसी एक मिनट में तुमने वह तार पकड़कर उसे बाहर खींच लिया और बाहर फेंक दिया। अगर एक सेकंड और देर करते तो यहां हम सबकी लाशें पड़ी रहती।" अनि ने सबकुछ विस्तार से एक्सप्लेन कर समझाते हुए कहा। नरेश, अनि को किसी मसीहा की भांति सम्मान भरी नजरों से देख रहा था। तभी अनि को ख्याल आया कि खून अधिक बह चुका था, वह उस स्थान को दबाए हुए थी। अरुण के हाथों में वह खंजर था जिसपर अब भी काव्या का खून लगा हुआ था, उसने एक कपड़ा उठाया और अपना अपना खंजर पोंछने लगा। अनि ने कमरे से फर्स्ट एड बॉक्स लाकर काव्या के जख्म को साफ कर मलहम लगा दिया साथ ही टिटनेस का एक इंजेक्शन भी दिया।

"मैं तुम्हारें बारे में नहीं जानता! आखिर कौन हो तुम? वैसे तुम्हारा शुक्रिया! आज तुमने मुझे एक बहुत बड़े गुनाह को करने से रोक लिया।" अरुण फिर से अनि की ओर बढ़ा, अनि बिना उसको देखे ही उसकी बांह पर चढ़ी पुरानी पट्टी हटाकर, दवा लगाकर फिर से पट्टी करने लगा। सबकुछ करने के बाद अनि आराम से सोफे पर बैठ गया, काव्या उसके बगल में सिमटकर बैठी हुई थी।

"मैं हूँ आपका प्यारा हनी बनी, अनि! मैं बस काव्या की सुरक्षा के लिए यहां हूँ!" कहते हुए अनि ने काव्या को चुपके से इशारा किया, काव्या ने नरेश को कुछ कहा।

"हां! ये काव्या का स्पेशल बॉडीगॉर्ड है बस! जब से वह घटना हुई है मैं नहीं चाहता ऐसा कुछ दुबारा हो इसलिए यह लड़का हमारे साथ है।" नरेश ने झूठ बोलने की कोशिश की।

"वैसे एक बात बताओ अगर मैं वक़्त पर नहीं आ पाता तो तुम क्या करते?" अनि के जेहन में कब से यह सवाल था, उसने कौतूहल को शांत करने के इरादे से पूछा।

"अरुण ने नीचे गिरी हुई अपनी पिस्तौल उठाऊ और जेब से मैगज़ीन निकालते हुए पिस्तौल के मैगज़ीन चैम्बर में ठूंस दिया।" अनि समझ गया कि वह पिस्तौल पूरी तरह खाली थी। "वैसे इतना तो मैं जानता हूँ कि तुम इनके बॉडीगॉर्ड नहीं हो, तुम मुझे अपनी वास्तविक पहचान बता सकते हो? तुमने मुझपर एक एहसान किया है, बदले में मैं तुम्हारा राज, राज ही रखूंगा।" अरुण ने मुस्कुराते हुए कहा, अनि यह सुनकर हैरान रह गया।

"चिंता मत करो अनि! ऐसे ही यह उत्तराखंड का सबसे तेज तर्रार पुलिसवाला नहीं है, इसकी नजरों से कुछ भी छिपा पाना मुश्किल है।" नरेश ने मुस्कुराते हुए कहा। अब जाकर उसे सांस में सांस आयी थी।

"मैं एक सीक्रेट एजेंट हूँ! मुझे इस केस को सुलझाने के लिए भेजा गया है। इससे ज्यादा बताने की अनुमति हमें नहीं है।" अनि ने अरुण के कान में चुपके से कहा।

"यह तो मैं तुमसे हुई फाइट के दौरान ही समझ गया था!" अरुण धीमे से हँसा।

"हम आगे क्या करें?" नरेश ने उन दोनों से पूछा।

"कुछ नहीं! आप बस हमें उस कुत्ते का पता देंगे, हमें अभी उसे और उसके मकसद को नेस्तोनाबूद कर देंगे!" अरुण एक बार फिर से गुज़ से भरने लगा।

"हे! ठहरो जरा! ठंड रखो।" अनि ने अरुण को रोकते हुए कहा। "उस खाली स्थान ने आपको मारने का प्लान बनाया था?" अनि ने नरेश की ओर देखते हुए पूछा। नरेश ने ऐसे प्रतिक्रिया दी जैसे वह कुछ समझा ही न हो।

"तो?" अरुण ने पूछने की गरज से कहा।

"तो हमें उसके प्लान को सक्सेजफुल बनाना होगा।" अनि मुस्कुराया, यह देखकर नरेश बुरी तरह घबरा गया।

"तुम कहना क्या चाहते हो? जब प्लान सक्सेजफुल होने देना था तो मुझे रोका ही क्यों?" अरुण की भौंहे चढ़ गई।

"अरे यार! तनिक समझदानी में बात घुसाओ हमारी!" अनि का लहजा एकदम से बदल गया, वह बच्चों की तरह बिफर पड़ा। "हमारे कहने का मबतल ये है कि वो 'खाली स्थान' भैया जो चाहते थे उनको महसूस होने दो कि सफल हो गए।"

"तो ऐसे कहो न!" अरुण हँसते हुए अपने माथे पर हाथ मारकर बोला।

"आप दोनो को कुछ दिन तक अंडरग्राउंड होकर रहना पड़ेगा, ऐसे में वह कोई न कोई गलती जरूर करेगा, जिससे हम उस तक पहुंच सके।" अरुण ने नरेश से कहा।

"इसकी क्या जरूरत है! मैं तुम्हें उसका पता बता देता हूँ, यह काली कार तुम्हें सीधा उस स्थान तक ले जाएगी।" नरेश ने कहा, इस वक़्त उसके होंठो पर गजब की मुस्कान उभरी।

"कहाँ?"

"ब्लैक बिल्डिंग!" नरेश ने कहा।

"क्या? वो खंडहर उनका ठिकाना है!" अरुण की आँखे आश्चर्य से विस्फारित हो गईं।

"नहीं उसके नीचे, बहुत बड़ा सीक्रेट चैंबर है। जो सरकारी एजेंसी बनाने के लिए बनाई गई थी, मगर अब वहीं ब्लैंक का अड्डा है। वहीं से वह सबकुछ चला रहा है।" नरेश ने बताया। "यह कार तुम्हें उस सीक्रेट हॉल तक ले जा सकती है।"

"वाओ! ये तो सीधा ट्रम्प कार्ड हाथ लग गया! अब उस ब्लैंक को इतनी बुरी मौत मिलने वाली है कि हर ओर ब्लैंक ही नजर आएगा उसे!" अरुण की आँखों में एक बार फिर रोष नजर आने लगा।

"जरा ठहरो अरुण! अभी कुछ भी करना ठीक नहीं होगा। शायद इनकी सूचना सही हो और ब्लैंक हमारे हाथ लग जाये, मगर फिर भी मेरा दिल।यही कह रहा है कि इन्हें अंडरग्राउंड हो जाना चाहिए। मीडिया को यही लगें की नरेश रावत और उनकी बेटी काव्या रावत की बम विस्फोट में हत्या हो गयी है।" अनि ने अरुण को रोकते हुए कहा। "अगर हम सफल हुए तो कल ही ये बाहर निकल सकते हैं।"

"अगर तुम्हें ऐसा लगता है तो हमें कोई प्रॉब्लम नहीं अनि! तुमने अभी-अभी हम दोनों की जानें बचाई है, मैं तुम्हारा कर्जदार हूँ!" नरेश ने अपने होंठो पर मन्द मुस्कान लाते हुए कहा।

"थैंक्स! बाकी हम सब देख लेंगे।" अनि ने मुस्कुराते हुए कहा।

"मेरे घर में ही एक तहखाना है, जिसके बारे में कोई नहीं जानता हम आसानी से वहां रह सकते हैं।" नरेश ने कहा। अनि ने काव्या को गोद में उठा लिया और तीनों नीचे जाने लगे। थोड़ी ही देर बाद उनकी सारी तैयारी पूरी हो चुकी थी, दोनों बाहर निकल आये, अरुण ने दरवाजा इस तरह बंद कर दिया जैसे कभी खुला ही न हो।

"चलो! अब हम उस खाली स्थान को फील करके आएं! अनि उछलते हुए बोला। अरुण ने नरेश से कार की चाभी ले लिया था, वह बिना कुछ बोले अनि की बकबक को अनसुना करते हुए कार की डोर खोलने लगा। उसने कार में बैठते ही स्टार्ट कर दिया, अनि यह देखकर थोड़ा हड़बड़ाया और फिर तेजी से दौड़ते हुए कार में घुस गया, अरुण के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान खिल गयी।




क्रमशः…..


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4 Comments

Natash

06-Aug-2023 05:10 AM

👍👍👍

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Seema Priyadarshini sahay

11-Nov-2021 06:24 PM

बहुत बेहतरीन भाग।

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Niraj Pandey

08-Nov-2021 08:52 AM

बहुत ही शानदार

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